बोझिल से पंखो ने चाहा था उड़ना
सपना था मेरा हकीकत को चुनना
इरादो को मेरे खबर ही कहा थी
हकीकत न जाने कहा गुमशुदा थी
उड़ते उड़ते फिर पंखो के पास
बहने लगी जैसे कोई प्यास
फिर से तलाशा सारा आकाश
आया नज़र नहीं कही विश्वास
उड़ते , उड़ाते, उड़ता गया
बहते, बहाते जुड़ता गया
टूटा न जाने कितनी बार
रूठा मगर न एक भी बार
कृते अंकेश
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