एक गतिमान जीभ
शब्द बोलने को आतुर
में लिखता गया किताबो पर पंक्तिया
बिना अर्थ समझे और जाने
अन्धकार में खीचता गया चित्र
लकीरों के उन्मादों में फसे भाव विचित्र
उभरते रहे पन्नो पर बनकर यादें
खोदा गया समय जिनके ऊपर
और दफना दिया गया
इतिहास के भवन में कही
इति श्री के लिए ....
कृते अंकेश
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