मेघ अभी पतझड़ है मेरा
आंसू मेरे अभी झरे है
तेरे आँचल से भी ज्यादा
जलकण इन नैनों से निकले है
यही गिरी थी जल की धारा
शुष्क अधर थे रहे बिखरते
इन अंखियो के सावन में फिर
मिले यहाँ पर सभी बिछड़ते
उम्र तेरे जीवन के सपने
यादें बनकर रहे तरसते
सूनी अंखिया सूना सावन
अधर रहे थे फिर भी हसते
कृते अंकेश
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