नंग धड़ंगी अति भयावह भीषण काया
किट्ट काला कर्कश कुबड़ा सा वह साया
बोझ तले उसके निरीह जानवर भागता
अपनी तलवारों से नरमुंडो को काटता
थर थर काप रहे थे लोग जहा वो जाये
हर ओर छोर से रक्तो की नदिया रहा बहाए
देख राज का राजतिलक भू में जा बिखरा
उसकी हूकारो से आसमान तक फिकरा
बस उड़ता वो चला पवन के साथ यु आगे
मानो स्वय शिवा दोड रहे प्रलय मचाके
बस एक रहा वो और न कोई नज़र था आता
क्या सचमुच था वो इस सृष्टि का भाग्य विधाता
कृते अंकेश
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