वर्जित पुस्तक का आदर्श वाक्य
फिर फिर दोहराता तेरे साथ
उड़ते जाते यह कैश कपाट
लहराता तेरा वक्ष विशाल
सजता जीवन का है उन्माद
बहता योवन का रस अनायास
आनंदमग्न हुए दोनों आज
छलकर स्वप्नों को अपने साथ
जीवन क्रीडा में मग्न रूप
तेरे आँचल में सिमटी धूप
तेरे अधरों के खुले पाश
बंधित करते है मुझे आज
फिर सिमट रही देह उलझ रही
फिर एक रूप बन उभर रही
फिर उभरा चेहरों पर आनद भाव
पाया मानो था स्वर्ग आज
कृते अंकेश
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