नैनों की भाषा समझाना
क्या इतना मुश्किल काम कोई
बन अर्थहीन मैं भटकी हूँ
इन शब्दों का न विराम कोई
है शब्द अर्थ न अर्थ शब्द
जीवन एक विहंगम नृत्य बना
क्या पास दूर क्या दूर पास
स्वप्नों को क्या हुआ पता
था जिन नैनों को मैंने जाना
वह बंद पलकों में खोये कहीअब तस्वीर निहारा करती हूँ
अधरों की हसी है सोयी कही
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