कही यादो के किस्से है
कभी ख्वाबो में मिलते है
कही खुशियों के पल गहरे
कभी दुःख के भी है पहरे
यह डूबी शाम है कहती
निशा अब पास ही रहती
नहीं अब दूर तक जाना
खयालो में न खो जाना
चिरागों के उजाले है
बड़ी मुश्किल संभाले है
पवन की बासुरी बहती
तिमिर के साथ थी रहती
यह डूबी शाम का कहना
घटा को है सदा बहना
नहीं अब भींग तुम जाना
खयालो में न खो जाना
उठी फिर रौशनी कैसी
गगन में दूर तक ऐसी
अगर यह चांदनी है तो
चन्द्र को भी साथ था लाना
यह डूबी शाम का आना
घटाओ का यु छा जाना
नहीं अब भींग तुम जाना
खयालो में न खो जाना
कृते अंकेश
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