समाज
मनुष्य का विकास
कुछ अधूरे प्रश्न
एक प्रतिविम्ब
जीवित है कल्पना
एक नए कल की
बेहतर कल की
प्रत्युत्तर है अधूरा
समाज के उस वर्ग के बिना नहीं है पूरा
जिसे नहीं है पहुच
आधारभूत आवश्यकताओ की
पहचान नहीं है संघर्षवाद के सिद्धांतो की
वो तो भटकता है
एक रोटी की आस में
भूखे पेट की प्यास में
एक भूख के होते हुए भला दूसरी भूख कैसे लगेगी
खाली पेट में विचारो की माला कैसे गुथेगी
पहले खोजना होगा समाधान इस समस्या का
तभी संभव है हल किसी और प्रश्न का
कृते अंकेश
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