ankesh_writes
Friday, September 16, 2011
ओस की बूंदों को सहेजे है धरा
गगन रात भर क्यों रोया
मुस्कुराती थी चांदनी
चंद्रमा भी नहीं सोया
निशा का आँचल
समेटे था जग पटल को
अन्धकार ने भी कहा कुछ देखा
कुछ आवाजे
रात्रि के सन्नाटे में सुनाई दी होगी
पर किसे खबर जब सारा जग ही सोया
कृते अंकेश
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