ankesh_writes
Thursday, September 15, 2011
संध्या शायद स्वप्न को यू अधूरा न छोड़ दे
ये घटा इस पथ से आकर मुख कही न मोड़ ले
दूर तक थे जो चले तेरे और मेरे कदम
इस अँधेरे में कही वो पथ नए न जोड़ ले
कृते अंकेश
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