प्रेम कुछ ढाचो या कुछ शब्दो में सीमित रह जाने वाली चीज़ नही
न ही यह कुछ चिठ्ठियो में सिमट पाता हैं
कुछ शामे इसे अपने इर्द गिर्द पाती तो जरूर हैं
लेकिन रात के अंधेरे में बहकर यह कही दूर निकल जाता हैं
न ही यह कुछ चिठ्ठियो में सिमट पाता हैं
कुछ शामे इसे अपने इर्द गिर्द पाती तो जरूर हैं
लेकिन रात के अंधेरे में बहकर यह कही दूर निकल जाता हैं
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment