शर्म क्या है आंसुओ में
क्यो भला उनको छिपाना
मेरी कविता ने पिरोया
बदला है उनका ठिकाना
ढूंढती है दर्द को भी
यह कलम जाकर जड़ो में
टूट मुरझाया गिरा क्यो
फूल इनको खोज लाना
क्यो भला उनको छिपाना
मेरी कविता ने पिरोया
बदला है उनका ठिकाना
ढूंढती है दर्द को भी
यह कलम जाकर जड़ो में
टूट मुरझाया गिरा क्यो
फूल इनको खोज लाना
कृते अंकेश
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