मन किस प्रहर के गीत गाये अनसुने
मन इस शहर को छोड़ जाए बिन रुके
मन पक्षियो के पंख लेकर जा उड़े
मन तेरे घर की झुरमुटो में जा छिपे
मन ढूंढता वह शाम जिसमे थी तू रही
मन सोचता है रात वो थी क्यो ढली
मन उड़ता है फिर फिर उस पल के लिए
मन जुड़ता है जाकर वो सपना जिए
मन इस शहर को छोड़ जाए बिन रुके
मन पक्षियो के पंख लेकर जा उड़े
मन तेरे घर की झुरमुटो में जा छिपे
मन ढूंढता वह शाम जिसमे थी तू रही
मन सोचता है रात वो थी क्यो ढली
मन उड़ता है फिर फिर उस पल के लिए
मन जुड़ता है जाकर वो सपना जिए
कृते अंकेश
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