कहने को तो सड़क जोड़ती इस मिट्टी को उस मिट्टी से
पर कितने ही खेत तोड़ती इस मिट्टी से उस मिट्टी के
इन्ही रास्तो से जाता है उन शहरो का माल तमाम
लूट खसोट या साम दाम हो बिकता है बस यही किसान
फिर भी सींच रहा वो मिट्टी अपने श्रम के पानी से
मिल पायेगा उसको क्या कुछ अबकी इस राजधानी से
कृते अंकेश
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