प्रेम खोलता है सपनो को
प्रेम जोड़ता है अपनो को
प्रेम सुबह प्यारी सी लाता
प्रेम रात्रि शुभ कहता जाता
प्रेम हँसा करता होठो पर
प्रेम खिला करता चेहरो पर
प्रेम नहीं वैचारिक पुस्तक
प्रेम नहीं अनजानी दस्तक
प्रेम नहीं है व्याधि भारी
प्रेम नहीं है जिम्मेदारी
प्रेम का केवल परिचय इतना
मैंने तुमको समझा अपना
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment