यह खिड़की ही मुझे जोड़ती है
उस हक़ीक़त से
जिसमे एक सुबह होती है
दिन निकलता है
शाम ढलती है
चहल कदमी, लोगो के आने जाने के स्वर
बस का हॉर्न, गाडियो की आवाज़
साईकिल की घंटी
लोगो की भीड़ का एकत्रित स्वर
सब कुछ
बता सकता हूँ
बिलकुल ठीक ठीक
कितने पल, घंटो, दिन और वर्षो से बैठा हूँ
इस खिड़की के इस तरफ
कृते अंकेश
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