जो लोग भीड़ में खड़े होते है
वो भीड़ से उतने ही दूर होते है
भीड़ हमेशा एकांत को तलाशती है
यह प्रकृति का विरोधाभास ही है
कि हम हर उस चीज़ की कल्पना करते है
जो हमारी पहुच से कोसो दूर है
उड़ना मनुष्य ने सहज ही नहीं सीखा
यही विरोधाभास हमेशा उससे प्रश्न करता रहा
कि क्या है आखिर वह जिसकी खोज में चले जाते है अनगिनत पक्षी
यही जिज्ञासा ले गयी उसे
असीमित ज्ञान के भण्डार के पास
उसने पंखो को कागज़ पर उकेरा
मष्तिष्क से परिष्कृत किया
और तकनीक के उपयोग से स्व्प्न को वास्तविकता में बदला
बस कुछ इसी तरह भीड़ ढूंढती रहती है अनगिनत प्रश्न और उनके हल
इसी विरोधाभास के दम पर
कृते अंकेश
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