ankesh_writes
Saturday, February 15, 2014
तुम तक पहुचाये ख़त कितने
कितनी रात गुज़री उन तक
कुछ शब्दो में, कुछ अश्को में
भींगे ख़त जो पहुचे तुम तक
न जाने क्या तुमने पाया
इंतज़ार में बीते पल फिर
इंतज़ार न खत्म, लिखा ख़त
चलता फिर से, फिर फिर यह क्रम
कृते अंकेश
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