लहरें समुद्र में बार बार उभर कर आती ही जा रही है , लहरों के आते हुए क्रम को एवं उनके जोश को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी राजा की सेना कही पूरे जोर शोर से चढाई करने जा रही हो, तात्पर्य यह है कि उनका उत्साह देखते ही बनता है | चंद्रमा की रौशनी में लहरों का जल चमकते हुए ऐसा दिख रहा है मानो प्रिय के आलिंगन में बद्ध प्रेमिका मुस्कुरा रही हो | यह देख कर प्रथ्वी को लगता है की वह तो अकेली ही रह गयी , जबकि वास्तविकता यह है की लहरों का जल अंत में धरा पर ही आना है एवं चांदनी तो सदा ही उसके पास भी है लेकिन यहाँ महत्वपूर्ण द्रश्य चांदनी का लहरों से मिलन है जो धरा के सानिध्य में न होकर सिन्धु में हुआ, जिसका उसे दुःख है |