तुम अगर हो ख्वाब मेरा
तो हक़ीक़त की चाह किसको
मानता हूँ में जिया हूँ
इस जगत की भीड़ में
है नहीं कुछ पास मेरे
इस अनोखे नीड़ में
लेकिन सजाता हूँ जिसे में
पालता आँखो में हूँ
तुम अगर वो ख्वाब मेरा
तो हक़ीक़त की चाह किसको
है नहीं मेरा सहारा
है कहा मेरा किनारा
दे सकू में जो तुझे
है नहीं उपहार प्यारा
लेकिन सजाता फिर पलो की
याद को आँखो में हूँ
तुम अगर वो ख्वाब मेरा
तो हक़ीक़त की चाह किसको
में कहा तुझमे जुडूंगा
दूर भी कैसे रहूंगा
पास तुझको ला सकू
है कहा वो भाग्य तारा
लेकिन जियूँगा में गमो की
जोड़ती झिलमिल सी धारा
तुम अगर वो ख्वाब मेरा
तो हक़ीक़त की चाह किसको
कृते अंकेश
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