उड़ती मिटटी में साँसे ढाल
बनाया किसने यह इंसान
कि अपनी पर जब यह आ जाये
नहीं कुछ इसके आगे तूफ़ान
छिपाया इसमें कितना नीर
बनाया इसको कितना धीर
मगर जब टूटा करता वीर
नदी ज्यो पर्वत से बहती पीर
मगर पाया इसने विस्तार
कि जैसे नभ का है यह सार
टूटे चाहे क्यों न कितनी बार
उठा करता यह फिर बन विशाल
कृते अंकेश
बनाया किसने यह इंसान
कि अपनी पर जब यह आ जाये
नहीं कुछ इसके आगे तूफ़ान
छिपाया इसमें कितना नीर
बनाया इसको कितना धीर
मगर जब टूटा करता वीर
नदी ज्यो पर्वत से बहती पीर
मगर पाया इसने विस्तार
कि जैसे नभ का है यह सार
टूटे चाहे क्यों न कितनी बार
उठा करता यह फिर बन विशाल
कृते अंकेश
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