शनिवार की शाम
बंद थे दरवाजे हमारे लिए
जो जाते है बाहर
इन चारदीवारियो से
भोजन की भीनी सुगंध
घिरती रही मष्तिष्क में
करती रही असंभव प्रयास
इच्छाओ के परिवर्तन में
दुर्लभ्य तंदुल प्रकार
उभरते चित्र यायावर
प्रखर लेकिन यह विश्वास
रहेंगे आज यही अपने घर
कृते अंकेश
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