निकले थे घर से खाने को राजस्थानी खाना
बोला दोस्त निकल गेट से जा दाये मुड जाना
वही सामने होटल उनका मस्त वहा का खाना
तबियत खुश हो जाएगी तब ही बापिस आना
चले मस्त हो हम भी फिर ले सपने ऊचे ऊचे
बस पल भर में गये नापते वो गलिया वो कूंचे
लेकिन यह क्या यहाँ तो दाए बाए नहीं कुछ दिखता
थालपकटटू रहा सामने बाए कीचड का गड्डा
लगे सोचने कहा भला अब जाकर किससे पूछे
अगर समझ ली उसने हिंदी फिर कैसे तमिल को बूझे
सोचा अब जब दिया ओखली में सर तो क्या डरना
आ गए जब इतना आगे तो फिर क्या पीछे मुड़ना
पर शायद किस्मत फूटी थी दिखा सामने होटल
झटपट हम जा पहुचे उसमे दिया फटाफट आर्डर
थाली शायद बरसो से इंतज़ार थी करती
उस पर आध इंच धूल की परत रही थी सजती
कच्ची भिन्डी लाकर बोला यह राजस्थानी खाना
सांभर डाल कटोरी में कहता जैसे खा लो जो है खाना
और करेला संग में उसके मानो इतना कम था
लगा हमें क्या भूल हो गयी क्यों खाने का मन था
कृते अंकेश
बोला दोस्त निकल गेट से जा दाये मुड जाना
वही सामने होटल उनका मस्त वहा का खाना
तबियत खुश हो जाएगी तब ही बापिस आना
चले मस्त हो हम भी फिर ले सपने ऊचे ऊचे
बस पल भर में गये नापते वो गलिया वो कूंचे
लेकिन यह क्या यहाँ तो दाए बाए नहीं कुछ दिखता
थालपकटटू रहा सामने बाए कीचड का गड्डा
लगे सोचने कहा भला अब जाकर किससे पूछे
अगर समझ ली उसने हिंदी फिर कैसे तमिल को बूझे
सोचा अब जब दिया ओखली में सर तो क्या डरना
आ गए जब इतना आगे तो फिर क्या पीछे मुड़ना
पर शायद किस्मत फूटी थी दिखा सामने होटल
झटपट हम जा पहुचे उसमे दिया फटाफट आर्डर
थाली शायद बरसो से इंतज़ार थी करती
उस पर आध इंच धूल की परत रही थी सजती
कच्ची भिन्डी लाकर बोला यह राजस्थानी खाना
सांभर डाल कटोरी में कहता जैसे खा लो जो है खाना
और करेला संग में उसके मानो इतना कम था
लगा हमें क्या भूल हो गयी क्यों खाने का मन था
कृते अंकेश
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