तुम गुलाबी रंग से खुद को सजाओ आज
मैं शिकायत क्यों करू, मेरा क्या एतराज
में खड़ा जिस मोड़ पर राहे यहाँ अनेक
थे मिले मुझको जहा तुम राह थी वो एक
कह रही यह रात फिर उलझन भरी मुझसे
साथ जब तुम हो नहीं फिर दूर हम किससे
तोड़ कर सारे बहाने मन चला फिर से
हारना या जीतना यह खेल न अपने
कृते अंकेश
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