है रात जो यह
ढलती ही नहीं
आँखों से कभी
छलकी ही नहीं
हम दूर सही
मजबूर कही
यादो की चुनर
उडती ही रही
जो खोये है
पलकों मैं कही
साँसों ने जिन्हें
था नाम दिया
सुबह भी उनका
क़र्ज़ हुई
जाने क्या था
पैगाम लिया
रुखसत होकर
अब अश्को ने
आँखों से नाता
तोड़ दिया
कल तक थे जो
फिर पास रहे
आना जाना भी
छोड़ दिया
हमने फिर भी
चुन चुन करके
सपनो की सेज
सजा डाली
ओ रात कहा अब
तू यु चली
हो बनी
बावरी मतवाली
कृते अंकेश
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