प्रेम परिभाषित नहीं है
प्रेम प्रस्तावित नहीं
प्रेम प्रेरित भी नहीं है
प्रेम पूरित भी नहीं
साध्य है या साधना
आराध्य या आराधना
हार जीत या मधुर
है कोई उपासना
क्या विरह का दंभ है
या मधुर संग है
आसमा से या कटी
बस कोई पतंग है
रंग में न रूप में
छाव में न धूप में
यह मिला जब भी मिला
बस प्रेम के ही रूप में
कृते अंकेश
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