ankesh_writes
Monday, October 31, 2011
आहिस्ता आहिस्ता गयी कितनी रातें
हिसाब ही कहा है, कैसे बताएं
अब तो आरज़ू है जन्नत के इस गलीचे से दूर कही
दरख्तों की छाव में भी कुछ दिन बिताएं
कृते अंकेश
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