ankesh_writes
Sunday, October 09, 2011
स्वप्न
आभास स्वतंत्रता का
है राज्य मेरा
न कोई सीमा न कोई बंधन
उड़ता हूँ आज़ाद
परिचित या अपरिचित
सभी है मेरी ही कल्पनाये
नहीं है विवशता रहने की हमेशा
मैं ही सृजक मैं ही संहारक
तैरता हूँ निश्चल इस सागर में
है जीवंत यह मेरा स्वप्न
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment