क्षोभ
वो कौन आकाश के आँगन में खेलता है
स्वप्नों के साथ
तरसाता है
सताता है
बूदो की प्यास में
पवन को झुलसाता है
सुना है मेने शोर मेघो के गर्जन का
डरावना सा लगता है
जैसे वह अपरिचित व्यक्तित्व भयभीत कर रहा हो
लेकिन कभी कभी उसका भी दिल पिघलता है
बरसता है वह
पर इस तरह
कि शांत ही नहीं होता
जलमग्न कर देता है धरा को अपने आंसूओं से
ये क्षोभ है उस ह्रदय का
जो नहीं समझ सका जीवन को
और संतृप्त करता है आंसूओ को आंसूओ से
कृते अंकेश
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