मैं ह्रदय की बात रे मन
किससे कहू यह शोर सारा
क्या भला मैं व्यर्थ हारा
इस झुलसते विश्व दिन की
है कही क्या रात भी
है घिरी यह कालिमा जो
लाएगी क्या बरसात भी
किससे कहू यह शोर सारा
क्या भला मैं व्यर्थ हारा
है कही क्या रात भी
है घिरी यह कालिमा जो
लाएगी क्या बरसात भी
न दिखाओ बस स्वप्न मुझको
मैं यहाँ स्वप्नों से हारा
किससे कहू यह शोर सारा
अश्रु आँखों में सजाये
कैसे विजय का ताल दू
है गहन छायी निराशा
कैसे कहो मैं टाल दूं
चिर विषादो के प्रणय में
क्षुब्ध है जीवन की धारा
किससे कहूं यह शोर सारा
कृते अंकेश
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