ankesh_writes
Wednesday, August 31, 2011
बढ चले दल, फिर नयी मंजिलो की आस में
घटती दिवा, बुझने लगी चन्द्र के प्रकाश में
संध्या तले, दीपक जले बरसी कृत्रिम रौशनी
यह प्रकाशित आगमन ही रात्रि का आह्वान है
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment