कसूर किसका है
हमने तो बस रंगों से दोस्ती की
फिजा में गर छायी लाली तो कसूर किसका है
शिकायत लाख करे ज़माना
मगर तमन्ना ए हसरत अभी भी उतनी ही मासूम है
लेकिन फिर हाथो से यदि वही तस्वीर बन जाये तो कसूर किसका है
यु तो मौसम भी गुज़रते है
सावन से पतझड़ तक
लेकिन बिन मौसम बदली गर भिंगा जाये तो कसूर किसका है
मेरे आँगन में बगीचा है कुछ सूखे पेड़ लिए
पर अचानक से तितली आ गुनगुना जाये तो कसूर किसका है
कृते अंकेश
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