भीड़ है बदती हुई
गूजते कुछ स्वर भी है
उन्माद में डूबे हुए पर कुछ इनसे बेखबर भी है
धर्म भाषा जाति बोली कद या काठी क्या पता
इस समूह की भीड़ में हर एक इंसान दिख रहा
है व्यवस्थित से कदम, आँखों में पर आक्रोश है
खौलता है खू नसों में, उनके स्वरों में जोश है
रास्ते कब बन गए है मार्ग एक विश्वास का
है चली जिस पर यह सेना जीत का उन्माद सा
आज हम जायेंगे बदल अब हर उस एक सच को
छीनती है जो व्यवस्था हमसे हमारे हक को
कृते अंकेश
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