पंखो में भर ले चल कही मुझको ए सांझ तू
सपनो ने है थकाया
कैसे उनको मांग लू
रंगों से क्या शिकायत क्या उनसे हो गिला
है उनकी तो यह फितरत जो कुछ भी है किया
आँखों ने कुछ सुना और कुछ दिल ने था कहा
एक छोटा सा था सपना वो सपना ही रहा
पंखो में भर ले चल कही मुझको ए सांझ तू
सपनो ने है थकाया
कैसे उनको मांग लू
क्यों करते हो शिकायत किससे है यह गिला
रंगों को क्या पता, था दिल में तेरे क्या रहा
खो जाओ आज मुझमे रंगों का नूर है
शायद हो यह तुम्हारा पर सपना कोई जरूर है
पंखो में भर ले चलू कही तुमको मै आज फिर
जो कुछ था तुमने चाहावो सब मैं दे सकू
कृते अंकेश
2 comments:
Nice one :)
Thank you mam :-)
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