थोडा धीरज रखो
अपने भी दिन फिरेंगे
यह माट की हडिया हटेगी
टाट हट परदे सजेंगे
देखना चूल्हे में अपने
आग अब हरदम जलेगी
बर्तनों में पानी रहेगा
यह धारा आँखों से न बहेगी
गाडियों में बैठकर
हम भी कही फिर दूर होंगे
रात भी अपनी कटेगी
शांत सब स्वप्नों में रहेंगे
इतना सभी कुछ मिल सकेगा
सच बताता हूँ तुम्हे
जो यदि में पढ़ सका उन सभी की तरह
कृते अंकेश
अपने भी दिन फिरेंगे
यह माट की हडिया हटेगी
टाट हट परदे सजेंगे
देखना चूल्हे में अपने
आग अब हरदम जलेगी
बर्तनों में पानी रहेगा
यह धारा आँखों से न बहेगी
गाडियों में बैठकर
हम भी कही फिर दूर होंगे
रात भी अपनी कटेगी
शांत सब स्वप्नों में रहेंगे
इतना सभी कुछ मिल सकेगा
सच बताता हूँ तुम्हे
जो यदि में पढ़ सका उन सभी की तरह
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment