उन आँखों ने क्या देखा
मैं खुद को ही भूल गया
न जाने किन गलियों से गुज़रा
अपना ही घर भूल गया
अब तो दीवारे भी बस तस्वीर वही एक लगती है
है अनजान रही तो क्या
अपना ही घर भूल गया
मैं खुद को ही भूल गया
न जाने किन गलियों से गुज़रा
अपना ही घर भूल गया
अब तो दीवारे भी बस तस्वीर वही एक लगती है
है अनजान रही तो क्या
कुछ अपनी सी लगती है
लगता जैसे इन गलियों का सब कुछ खोया
बस एक वही चेहरा दिख रहा
न जाने किन गलियों से गुज़राअपना ही घर भूल गया
(क्रमश:)
कृते अंकेश
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