बादलो के घेरे से
पवन उठ कर बहने लगी
खिडकियों के कांच से
शायद कुछ कहने लगी
मेज़ पर रखी किताबे बस पन्ने पलटती गयी
धूप को यह क्या हुआ
बिन बताये चल पड़ी
बारिश की बूंदों ने भी अपना रुख इधर किया
पल भर में ही एक विपदा के आगमन ने मुझे चिंतित किया
कृते अंकेश
पवन उठ कर बहने लगी
खिडकियों के कांच से
शायद कुछ कहने लगी
मेज़ पर रखी किताबे बस पन्ने पलटती गयी
धूप को यह क्या हुआ
बिन बताये चल पड़ी
बारिश की बूंदों ने भी अपना रुख इधर किया
पल भर में ही एक विपदा के आगमन ने मुझे चिंतित किया
कृते अंकेश
No comments:
Post a Comment