ढूंढती है सुबह किनारा
किस तरफ है उसको जाना
रास्ता नहीं जाना पहचाना
मिलती क्षितिज से भोर बनकर
रंग अपना नभ में भरकर
चहचहाटो से संवर कर
स्वप्न को देती बहाना
किस तरफ है उसको जाना
किस तरफ है उसको जाना
रास्ता नहीं जाना पहचाना
मिलती क्षितिज से भोर बनकर
रंग अपना नभ में भरकर
चहचहाटो से संवर कर
स्वप्न को देती बहाना
किस तरफ है उसको जाना
कल मिली थी है नहीं वो
आज की सुबह अधूरी
रात के साये में छिपकर
बह गयी वो बात पूरी
खोलना है आज फिर से
दिन को अपना यह खजाना
देखना जीवन की सुबह को
अब किस तरफ है जाना
कृते अंकेश
आज की सुबह अधूरी
रात के साये में छिपकर
बह गयी वो बात पूरी
खोलना है आज फिर से
दिन को अपना यह खजाना
देखना जीवन की सुबह को
अब किस तरफ है जाना
कृते अंकेश
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