परिधियो में बीत रहे थे स्वप्न
खीचते सीमाएं बार बार
उभरते बादल नभ के श्वेत
बरसते बेबस हो हर एक बार
श्याम था तेरे नयनो का रंग
निशा ने छीना वर्ण विकार
मधुर अधरों के बिखरे पाश
सजाये शहर तेरा है आज
ढूंढता में जिसको हर पल
छवि मधुरित जिसका विस्तार
कही खोयी स्वप्नों में रही
रहा उन स्वप्नों का इंतज़ार
कृते अंकेश
खीचते सीमाएं बार बार
उभरते बादल नभ के श्वेत
बरसते बेबस हो हर एक बार
श्याम था तेरे नयनो का रंग
निशा ने छीना वर्ण विकार
मधुर अधरों के बिखरे पाश
सजाये शहर तेरा है आज
ढूंढता में जिसको हर पल
छवि मधुरित जिसका विस्तार
कही खोयी स्वप्नों में रही
रहा उन स्वप्नों का इंतज़ार
कृते अंकेश
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