गलिया भागती रही
रास्ते बदलते रहें
लोग मिलते और बिछुड़ते रहे
शहर ने भी सीख लिया फिर
धीरे धीरे बदलना
व्यर्थ है
यहाँ इंतज़ार करना
अब चकाचौंध में शहर की
थम रही भीड़ भी
ढूंढती आँखे वही
जो हुई कभी दूर थी
कृते अंकेश
रास्ते बदलते रहें
लोग मिलते और बिछुड़ते रहे
शहर ने भी सीख लिया फिर
धीरे धीरे बदलना
व्यर्थ है
यहाँ इंतज़ार करना
अब चकाचौंध में शहर की
थम रही भीड़ भी
ढूंढती आँखे वही
जो हुई कभी दूर थी
कृते अंकेश
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