मेरा घर
घर के सामने सड़क
सड़क के उस पर हलवाई की दुकान
गरमागरम जलेबिया और कचोरियाँ
बच्चो के झुण्ड
सुबह सुबह स्कूल जाते बच्चे
ऊनी वस्त्रो से झांकते नन्हे नन्हे चेहरे
घडी की टिक टिक
कुछ आठ बजे का समय
सूरज का नामोनिशान नहीं
हल्का सा धुंध है
मेरे पैरो पर अभी भी रजाई है
हालाकि खिडकियों से आती हुई ठंडी हवा चहेरे को कबका जगा चुकी है
लेकिन आँखे अभी भी अर्ध्सुप्त है
मैं खुश हूँ यह सोमवार सभी बन्धनों से मुक्त है
कृते अंकेश
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