अंधियारे में डूब रही है
देख दिवस की ज्योति है
कालचक्र के फेर में उलझी
निज अस्तित्व भी खोती है
वाह निशा तेरा क्या कहना
दिनकर को भी सुला दिया
चमक रहे है तारे नभ में
इंदु भाग्य को जगा दिया
तम की माला ओढ़े जीवन
आज निशा में डूब गया
इस बेला के मंद नशे में
स्वप्न लोक में झूम गया
कुछ बिखरी सी आँखों में बस
मंद हँसी सी तैर रही
बीते पल के सुख को शायद
अब आँखे ही बोल रही
तेरे आगोशो में सोयी
मनुजनो की टोली है
छिटपुट सी आवाज़ कही है
लगता झींगुर की बोली है
यहाँ वहा निर्भीक डटा
कोई कर्मवीर सा योगी है
उसी साधना से खिल रही
जग विकास की झोली है
अंधियारे में डूब रही है
देख दिवस की ज्योति है
कालचक्र के फेर में उलझी
निज अस्तित्व भी खोती है
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