चिंतन
क्यों टूटे यह सपने
उड़ने की ही तो तयारी थी
रंग भरे थे तस्वीरो में
स्याही अभी सवारी थी
उलझन में डूबा मन
जाने कौन राह पर भटक गया
मेरे नयनो से झर कर
एक आंसू फिर से निकल गया
उम्मीदों की दुनिया ने
हिम्मत क्यों अब हारी थी गूँज रही मेरे दामन में
उसकी ही किलकारी थी
क्यों टूटे यह सपने
उड़ने की ही तो तयारी थी
No comments:
Post a Comment