क्षुदा विक्षिप्त तन भूल गया है
आँखे सब कुछ बोल रही
इस नुक्कड़ के अधियारे में
तकती आँखों को तोल रही
कुछ छूटा कुछ शेष रहा सा
जीवन कुछ भटका सा है
इस बस्ती का यह हिस्सा
अभी क्षुदा में अटका है
देखो देर नहीं हो पाए
कही श्वास न खो जायेंइस विकास में मानवता की
कही आस न खो जाये