एक दिन अक्ल मुझ पर कब्ज़ा कर लेगी
तोड़ सपनो का महल निकाला जायेगा मुझे बाहर
सम्पादकीय लेखको की तरह में भी करने लगूंगा गंभीर विमर्श
बंधित हो जाएगी मेरी कलम
तोड़ दिए जायेंगे मेरे शब्द
लेकिन तब तक में लिखता रहूँगा स्वतंत्र
उन्मुक्त हृदय में आए हर विचार को
बस इसी तरह
कृते अंकेश
तोड़ सपनो का महल निकाला जायेगा मुझे बाहर
सम्पादकीय लेखको की तरह में भी करने लगूंगा गंभीर विमर्श
बंधित हो जाएगी मेरी कलम
तोड़ दिए जायेंगे मेरे शब्द
लेकिन तब तक में लिखता रहूँगा स्वतंत्र
उन्मुक्त हृदय में आए हर विचार को
बस इसी तरह
कृते अंकेश
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