चौखट छूटी पर्दा उछला
माथे ने बिंदिया भी छोड़ी
हाथो ने कंगन को छोड़ा
रीति रिवाज की बेडी टूटी
इतनी आज़ादी पाने में
जाने कितनी सदिया गुजरी
भूल रहे जो घूँघट को रखते
परदे में बस चीज़े छिपती
कृते अंकेश
माथे ने बिंदिया भी छोड़ी
हाथो ने कंगन को छोड़ा
रीति रिवाज की बेडी टूटी
इतनी आज़ादी पाने में
जाने कितनी सदिया गुजरी
भूल रहे जो घूँघट को रखते
परदे में बस चीज़े छिपती
कृते अंकेश
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