भर पिचकारी देखो चली रे सवारी
छूटा जाये न कही कोई अंग
आज रंगों से सजा दो सारे भेद मिटा दो
देखो बन जाये सभी एक रंग
इन्द्रधनुषी रंगों की फुहारों में
भींग रहा जीवन
तन को भुला के आज मन को मिला लो
देखो रंगों का मौसम
भीनी है खुशबू पकवान सजेंगे
और रंगेंगा आँगन
तन भी मिलेंगे मन भी मिलेंगे
आया रंगों का सावन
कृते अंकेश