अनकही बातें मगर जब याद आती है
छूके होठो को कही तन्हाँ निकल जाती है
सोचता हूँ क्यों रुका था क्यों न कह दिया
शब्द आँखों में भरा था क्यों न बह दिया
खामोशियाँ ही फिर सदा मुस्कुराती है
अनकही बातें मगर जब याद आती है
भीड़ में होकर कही बस फिर बिछुड़ते है
तन्हा खयालो में कहा अब लोग मिलते है
रास्तो का मंजिलो से बस कुछ रहा दोस्ताना
बाकि सफ़र जाना पहचाना या अनजाना
अब तो हकीकत भी कहानी बन ही जाती है
छूके होठो को कही तन्हा निकल जाती है
कृते अंकेश
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