था प्रतीक्षित क्षण कभी जो
प्रियवर मेरा सम्मुख खड़ा था
नयन तकते थे नयन को
शेष तन विस्मृत पड़ा था
होती कहा सीमा समय की
विस्त्रता आकाश की
प्रेम से होती अपरिचित
शून्यता भी श्वांस की
नित परस्पर फिर कही जो
चल रहे उदगाम है
स्वर है तेरे स्वर है मेरे
प्रेम यह अविराम है
ढूंढते परिचय स्वयं का
मिलती कहानी पर नयी
सेकड़ो सदिया है गुजरी
बात लेकिन अनकही
कृते अंकेश
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