एक शहर
उम्मीदों का घर
बसते है जाने कितने दिल
कैसे सकता कोई उजाड़
क्या उसको न आई लाज
क्या मजहब का वास्ता
कैसा है यह रास्ता
नहीं सिखाता धर्म कोई भी
दानवता की दास्ता
मासूम मृतक चेहरों से कैसे
नए सृजन का ख्वाब सजोगे
क्या जानो तुम सृजन की सीमा
कभी कही यही मौत मरोगे
न समझो हम झुक जाते है
बड़े कदम यह रुक जाते है
लेकिन दिल इंसानी ही है
आँखों में आंसू भर आते है
कृते अंकेश
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